Sunday, August 8, 2010

प्रिय हुए हैं परदेशी


।।एक।।
ओ सावन के रुइया बादल
बन जाओ न कारे काजल
देख, समझ जाएंगे वो इशारा
भेजा है तुम्‍हें लेकर संदेश हमारा
लौटकर जल्‍द आना ,लाना जवाब
हम करेंगे हर दिन इंतजार तुम्‍हारा।


।।दो।।
ओ सावन की नखरीली हवा
थोड़ा थम थम कर चल जरा
सुर्ख मेंहदी रचती हैं हथेलियां
बाहों में भरती हरी हरी चूडि़यां
माथे पर सजती लाल बिन्दिया
तेरे पल्‍लू में बंधती अठखेलियां
तू राह न बदलना, बस
प्रिय की दिशा में ही मचलना।

।।तीन।।
सांवली सलोनी घटा
कितना मुश्किल है
विस्‍तृत नभ से छिटककर
कठिन डगर पर चल पड़ना
नीर साथ में लिए उमड़कर
ढूंढकर गगन में अपनी मंजिल
प्रिया की पाती प्रिय तक पहुंचाना,
जैसे कल घुमड़ना, आज मिट जाना।
              0 नीमा

4 comments:

  1. भाभी ने भोपाल से भेजा है संदेस
    भैया हैं बंगलोर में, कब आओगे देस.
    कब आओगे देस, भेज कर पतियाँ हारी
    नाम उत्साही, हो निरुत्साही, क्या लाचारी?
    नीमा भाभी जी, हम भी सिकायत लगा दिए हैं… ई भी कोनो बात हुआ. तेरी दो टकिया दी नौकरी वे मेरा लाखों का सावन जाए!!!

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  2. सांवली सलोनी घटा
    कितना मुश्किल है
    विस्‍तृत नभ से छिटककर
    कठिन डगर पर चल पड़ना
    नीर साथ में लिए उमड़कर
    ढूंढकर गगन में अपनी मंजिल
    प्रिया की पाती प्रिय तक पहुंचाना,
    जैसे कल घुमड़ना, आज मिट जाना।
    ....aapne manobhaon ka prakriti ke madhayam se sundar chitran kiya hai..
    Shandaar prastuti ke liye shubhkamnayen.

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  3. सुंदर रचनाओं के लिए बधाई - ब्लॉग की शुरुआत करने के लिए प्ररेकों का धन्यवाद्

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