।।एक।।
धूप की चादर ओढ़े
छांव खोज रही थी गौरैया
पेड़ के साये में दुबकी
पंखों में शरीर छुपाए
वह सांसों की हवा में
तपिश को भुलाने लगी
शाम आते आते उसके
चेहरे पर मुस्कान आने लगी
होठों पर थी उसके चुप्पी
पर अब वह धीरे-धीरे
गुनगुनाने लगी।
।।दो।।
तुमसे छुपा गए हम कई बातें
अपने से कैसे छुपाएं उन्हें
*
हिम्मत की सच बोलने की
कमजोर पड़ गई जुबान
*
कभी हुआ करता था जो कद बड़ा
अब वह अपने में ही सिमट गया
*
कभी लगता रहा ये सफर अकेला
कभी साथ चलता लगा कारवां
*
कभी लगती जिंदगी थकन
कभी विश्वास से भरी पूरी
।।तीन।।
नैया कितनी भी है जर्जर
फिर भी लड़ती रहती लहरों से
सम्बल देता विश्वास भरा संघर्ष
लगातार बहती रहती साहस से!
0 नीमा