Sunday, September 26, 2010

कंधे के ऊपर उठो : एक कविता बेटी के लिए

अपनी ताई के साथ पूजा और आस्‍‍था

उठो,गिरो फिर उठो
यह खड़े होने की
जद्दोजहद है मेरी बेटी 

घुटने के बल चलने से
बेहतर है उठो
चलो और दौड़ो 

जो दौड़ता नहीं वह
पिछड़ जाता है
खड़े हो और आसमान
की तरफ उठाओ हाथ 

परिंदों को बुलाओ, वे
तुम्हारे साथ होना चाहते हैं 

यह धरती लड़ाई का
मैदान है मेरी बेटी
जिन्दगी की लड़ाई लड़ो
और जीतो

अपने कंधे के ऊपर
उठो
उठोगी,तो तुम्हा़रे सामने
झुक जाएगा आसमान
                   0 स्‍वप्निल श्रीवास्तव
( फोटो में देवर-देवरानी अनिल-रानी की बेटियां हैं। कविता 'नया ज्ञानोदय ' अक्‍टूबर,2006 से साभार।)